परिवार जिंदगी का एसा हिस्सा है जो एक चारदीवरी में कई विचारों को पनाह देके रखता हैं। जिसमें सपने हैं तो जिंदगी से किए समझौते भी शामिल हैं। पर परिवार के उपजे प्रेम से ही सपने पैदा हो जाते हैं। यहां भी कुछ ऐसे सपने हैं जिन्हें एक मध्यमवर्गीय औरत देख रही हैं । वो अपने सपनों को लेकर बिल्कुल नर्वस नहीं हैं, क्योंकि उसे विश्वास है कि वह कर सकती हैं। कुछ ऐसे ही ख़यालात दिमाग में पैदा हो रहे थे जब आज ‘तुमहारी सुलू’ को पर्दे पर घटित होते देख रहा था। इस शुक्रवार को रिलीज हुई लेखक-निर्देशक सुरेश त्रिवेणी की फिल्म वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पूरी तरह फिट बैठती है, जो फेमनिज्म की एक अलग धारा से दर्शकों का परिचय कराती है। फिल्म के लेखक-निर्देशक सुरेश त्रिवेणी फिल्म के सब्जेक्ट को लेकर पहले से ही काफी कॉन्फिडेंट थे और फिल्म देखते समय एसा महसूस होता है। उन्होंने विद्या बालन के साथ मानव कौल और नेहा धूपिया, मलिष्का सभी को बहुत अच्छा अवसर दिया है।
फिल्म तुमहारी सुलू की कहानी के मुताबिक सुलोचना दुबे (विद्या बालन) मुंबई में रहने वाली एक मध्यमवर्गीय औरत है जो अपने 11 साल के बेटे और अपने पति अशोक दुबे (मानव कौल) के साथ मुंबई में रहती है । मुंबई की एक मिल में मैनेजर की नौकरी करके घर परिवार का खर्च चलाता है । सुलोचना दुबे की जिंदगी सिर्फ घर तक ही सीमित है लेकिन उसके कुछ सपने हैं कि वो चाहती हैं कि कुछ अलग करे लेकिन हालात उसे मौका नहींं दे रहे हैं। लेकिन जहां चाह होती हैं वहां राह निकल आती है। इसी कहावत के आधार पर एक दिन सुलोचना एक कांटेस्ट में भाग लेने के कारण एक एफएम रेडियो स्टेशन पर जा पहुंचती है । यहां से उसे अपने सपनों की पगडंडी मिल जाती हैं। एफएम चैनल की हेड (नेहा धूपिया) सुलोचना की जिद को देखते हुए, एक प्रयोग के तौर पर उसे रात्रिकालीन शो में रेडियो जॉकी बनने का अवसर देती हैं। और इस तरह आर जे के रूप में उसका सपना शुरू हो जाता हैं। वो रात्रिकालीन शो में श्रोताओं के बीच छा जाती हैं। उसकी हैलो सुनने के लिए हजारों लोग जागते रहते हैं। लेकिन इस सबके पीछे उसकी जिंदगी किस तरह प्रभावित होती है। इसे ही कहानी में आगे बयां किया गया है ।
फिल्म में विद्या बालन ने एक बार फिर अपनी दमदार वापसी करवाई है। दरअसल वो ‘बेगमजान’ के जरिए जो करना चाहती थीं वो उन्होंने सुलू के जरिए कर दिखाया है। वर्तमान में उनकी कद काठी भी सुलू के किरदार के अनुकूल हैं। इसलिए इस भूमिका में उनका अभिनय भी निखर के सामने आया है। ना केवल मानव कौल बल्कि अन्य छोटे-बड़े सभी कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया है । फिल्म के को-राइटर विजय मौर्य भी सुलू के र्स्ट्रक्टर के रूप में दर्शकों के दिल में खूब छाप छोड़ते हैं। फिल्म के संवाद बहुत अच्छे हैं जो बिना किसी का मजाक उड़ाए गुदगुदाते हैं। इसके साथ ही जिंदगी की कई अच्छी बातों को हंसते खेलते कह जाते हैं। अगर इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है तो वो ये कि जिंदगी को बहुत अच्छे और सच्चे ढंगे से चित्रित किया गया है।
तुमहारी सुलू की छोटी मोटी कमियों कोहम नजर अंदाज कर सकते हैं क्योंकि इस फिल्म में अच्छाइयां काफी हैं।, ये बड़े शहरों में रह रहे हर छोटे मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी कहती है। हर महिला को देखने के साथ ही ये बड़े बूढेे बच्चे सभी के देखने लायक फिल्म है। अगर आप तुम्हारी सुलू देखने की सोच रहे हैं तो बेहिचक देखके आ सकते हैं, आपके पैसे बिल्कुल बर्बाद नहींं होंगें।
पिछले सात साल से पिंकसिटी जयपुर के पत्रकारिता जगत के साथ रंगमंच और राजस्थानी सिनेमा में सक्रिय युवा पत्रकार धर्मेंद्र उपाध्याय बतौर फिल्म पत्रकार काम करते हुए कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का लेखन-निर्देशन कर चुके हैं। इन दिनों मुंबई स्क्रीन राइटर के रूप में सक्रिय हैं।