By: Team
कर्रम-कुर्रम, कुर्रम-कर्रम, मजेदार लज्जतदार…1990 के दौर में दूरदर्शन पर चलता लिज्जत पापड़ का विज्ञापन का यह जिंगल बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया था। ठीक वैसे ही जैसे इस पापड़ ने हर घर में अपनी जगह बना ली थी।
महिला सहभागिता का समर्थन करता यह व्यवसाय बेहद पुराना है। जब जसवंती जमनादार पोपट ने अपने हाथों से पहला पापड़ बेला तब तक उस पापड़ का नामकरण नहीं हुआ था। यह वर्ष 1989 के उस दौर की बात है । आलम गरीबी का था। जसवंती ने परिवार के आर्थिक संबल के लिए यह काम शुरू किया था। शिक्षा तो अधिक प्राप्त नहीं की थी उन्होंने, मगर दुनियॉदारी और अच्छे-बुरे की खूब समझ थी उन्हें। पापड़ बिलते गए और सात महिलाएं उनके साथ जुड़ गईं। सभी महिलाएं गुजराती थीं।
आपस में वे एक-दूसरे को बहन कहकर संबोधित करतीं। 80 रुपए की पूंजी उधार लेकर इस व्यवसाय को शुरू किया गया। छह महिलाएं पापड़ तैयार करतीं और एक महिला का काम उन पापड़ों को बेचना होता था। जल्दी ही उधार लिए गए अस्सी रुपए भी लैटा दिए गए और मुनाफा भी अच्छा कमाया। 80 रुपए की पूंजी लगाकर प्रांरभ किए गए इस व्यवासय का कारोबार आज सालान 800 करोड़ का है।
मगर इस दौरान बहाया गया पसीना, घिसी गई चप्पलें और खुरदेरे हुए हाथों का लंबा सफर और संघर्ष रहा। इस व्यवसाय की शुरुआत करने वाली सातों महिलाएं बहुत अधिक शिक्षित नहीं थीं मगर उनकी मेहनत और ईमानदारी में कसर न थी। तीन साल बाद यानी साल १९६२ में इस व्यवसाय को एक नाम दिया गया। ‘श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़’।
लिज्जत का नाम सुनते ही पापड़ दिखाई देने लगते हैं। यह ब्रैंड देश ही नहीं विदेशों तक मशहूर है। इसकी गुणवत्ता और स्वाद पर यह आज भी खरा उतरता है। ऐसा उन महिलाओं की बदौलत हुआ है जो पापड़ की गुणवत्ता को प्राथमिकता देती है। मशीनों की जगह पापड़ से जुड़े सभी काम हाथों से ही किए जाते हैं। इस व्यापार से जुड़ी सभी सदस्य महिलाएं ही हैं।
आज इस कारोबार से लगभग 44 हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं। श्री महिला ग्रामोउद्योग पापड़ के अलावा मसाले, गेहूं का आटा, चपाती, डिटरजेंट पाउडर, डिटरजेंट केक आदि। आजं इसकी तकरीबन 62 शाखाएं हैं। भुना हो तला पापड़ खाने का हिस्सा होता है। इसके बिना स्वाद अधूरा लगता है।