By: धर्मेंद्र उपाध्याय
हम एक अच्छी जिंदगी पाने की चाह में कई बार इतने आगे निकले जाते हैं कि सच्ची खुशियां हमसे काफी पीछे रहे जाती हैं। लेकिन जब ये बनावटी खुशियां जिनके पीछे हम भाग रहे होते हैं, वो हमें छोड़ती हैं तो हमें जिंदगी का एहसास होता है। मैं ये कोई तहरीर नहीं पढ रहा हूँ बल्कि ऐसे ही कुछ खयाल मेरे मन में उछल रहे थे जब आज मॉर्निंग शो में AC की तेज ठंडक के साथ लगभग अकेले सैफ अली खान की फिल्म शेफ देख रहा था।
राजा कृष्ण मेनन निर्देशित और लेखक सुरेश नायर, रीतेश शाह लिखित ‘शेफ’ वैसे तो एक फैमिली ड्रामा है पर हुनरमंद लेखकों ने इस ड्रामे को संवेदनशीलता का एसा जामा पहनाया है कि फिल्म कई जगह पर आपको गहराई तक छूती है। फिल्म की कहानी का आधार भले ही 2014 में आई हॉलीवुड फिल्म ‘शेफ’ हो पर ये फिल्म भारतीय रंगों से लबरेज हैं। जिसमें केरल की संस्कृति के साथ वही दिल्ली की स्वाद परंपरा के दर्शन भी होते हैं।
बाप बेटे के संबधों को परिभाषित करती हुई। इस फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार है कि दिल्ली के चांदनी चौक का लड़का रौशन कालरा (सैफ्अली खान) विदेश में एक रेस्टोरेंट में शेफ है। बचपन से ही खाने-पीने को लेकर क्रेजी रहने वाला शेफ अपने पिता की नाराजगी को झेलते हुए इस लाइन में आया क्योंकि उसके पिता कभी नहींं चाहते थे कि उनका बेटा एक बाबर्ची बने। लेकिन उसे अपने सपने पूरे कर लिया। रौशन विदेश में रहता हैं और भारत के कोच्चि शहर में उसकी तलाकशुदा पत्नी राधा (पदमप्रिया) उसके बेटे अरमान (स्वर कॉंबले) के साथ रहती है। एक दिन खाने में किसी बात की शिकायत पर रौशन एक ग्राहक से भिड़ पड़ता है। इसकी सजा उसे नौकरी से हाथ धोके चुकानी पड़ती है। वो बेहद परेशान है ऐसे में वो उसकी पत्नी के बुलावे पर अपने बेटे के स्कूल फंक्शन को अंटैड करने के लिए इंडिया आता है । यहां आकर वो बेटे से जुड़ता है और तलाकशुदा पत्नी को भी समझ पाता है। इन रिश्तों की समझाइस में फिल्म देख रहे दर्शक ऐसी यात्रा करते हैं जो संवेदनशीलता की कई परतों को खोल जाता है। ।
शेफ के रोल में सैफ अली खान ने अच्छा अभिनय किया हैं वहीं उनकी पत्नी बनी पदम प्र्यिा ने ना केवल अपने बेहतरीन अभिनय से बल्कि अपनी सावंली सलोनी छवि से खूब लुभाती हैं। फिल्म अच्छी लिखी गई है पर स्क्रीनप्ले पर थोड़ा काम और होता तो बेहतर होता क्योंकि फिल्म में कई दृष्य और किरदार कट जाते हैं। रौशन की पत्नी राधिका के साथ उसके संबंधों को देख ऐसा लगता ही नहींं है कि उनका तलाक हो चुका हैं।
फिल्म के निदेशक राजा कृष्ण मेनन को लोग उनकी फिल्म एयरलिफ्ट के लिए जानते हैं। लेकिन ये फिल्म एयरलिफ्ट से पहले बनाई गई उनकी दो फिल्मों की अगली पीढी की फिल्म हैं।
फिल्म बहुत कुछ सिखा जाती है मसलन वर्तमान में अधिकतर लोग जिंदगी को अपने हिसाब से रंगना चाहते हैं। धन संपदा और ऐश्वर्य की चीजों को समेटने में लगे रहते हैं और जो उनके लिए जिंदगी जीना चाहते हैं, उनकी ही परवाह नहीं कर पाते हैं। फिल्म देखकर लगता है कि कभी हमें रिशते निभाने के चलते दूसरों के हिसाब से भी जिंदगी को दिशा देनी चाहिए। इसके साथ ही बाप-बेटे के बीच का सीन जिसें पिता किस तरह से अपने पिता की तरह ही कठोर हो बैठता है या वो दृष्य जिसमें रौशन अपने बेटे को बताता है कि उनसे किस तरह जिंदगी में दुख दर्द झेले जिनकी अनुभूति मां के कोमल साए में रहने वाल उसका बेटा शायद ही कर पाए।
फिल्म पारिवारिक दर्शकों के लिए बनी है, हालांकि फिल्म को कमजोर स्टार्ट मिला है पर माउथ पब्लिसिटी के जरिए वीकैंड में कलैक्शन में सुधार आ सकता है। परिवार सहित आप देखने जा सकते हैं खासकर गृहिणियों को तो खूब लुभाएंगी, क्योंकि खाने-पीने के व्यंजनों पर भी खूब फोकस करती है। ये फिल्म सिनेमा में मनोरंजन ढूंढने वाले दर्शकों के लिए बिल्कुल नहीं हैं। पर जो सिनेमा को समाज का दर्पण मानते हैं उन्हें ये फिल्म बिल्कुल निराश नहीं करेगी। आप बेझिझक देख कर आ सकते हैं।