By: बुशरा खान नूरी
फिल्म ‘समीर’ में समीर की भूमिका निबाह रहे मौहम्मद जीशान अय्यूब को कामयाबी थाली में परोस कर नहीं मिली। उन्होंने कड़ा संघर्ष किया है। जीशान ने कई फिल्मों ने सपोर्टिंग और यादगार भूमिकाएं की हैं। फिल्म ‘रांझणा’ का मुरारी भला कौन भूल सकता है जो पूरी फिल्म में नायक धनुश के इर्द गिर्द रहता है। फिल्म ‘राईस’ और ‘टयूबलाइट’ में भी वह सपोर्टिंग भूमिकाएं निभा चुके है। उनके कैरियर की शुरूआत 2011 में फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ से हुई थी। इस में वह नेगेटिव रोल में नजर दिखाई दिए थे। इस के बाद इमरान खान और कैटरीना कैफ स्टारर फिल्म ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’ में इमरान के दोस्त के रूप में नजर आये। लेकिन दर्शकों के बीच पहचान उन्हें ‘फिल्म रांझणा और ‘तनु वेडस मनु रिटर्न्स’ से मिली।
जीशान दिल्ली में पलेबढ़े हैं। उन्होंने दिल्ली के किरोड़ीमल कालेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा से ऐक्टिंग का कोर्स किया। फिल्म ‘समीर’ के प्रमोशन के मौके पर दिल्ली आए जीशान से हुई बातचीत के कुछ खास अंश:
अभी तक आप ने फिल्मों में सपोर्टिंग रोल निभाए हैं फिल्म समीर में आप मुख्य भूमिका में हैं, किस तरह का रोल है यह?
समीर फिल्म एक पोलीटिकल थ्रिलर है। यह आतंकवाद से ही शुरू होती है, लेकिन उस के बहुत भीतर ले जाती है और डिटेल में हमें बहुत कुछ बताने का प्रयास करती है। यह एक लड़के की कहानी है जो गलती से पकड़ा जाता है और उसे मोहरा बना कर टेरेरिज्म के सस्पेक्टेड आदमी के घर पर छोड़ा जाता हैं इनफार्मेशन निकालने के लिए। फिर किस तरह उस की जिंदगी इन सब चीजों के बीच उलझती है। यही कहानी है और अंत में जो सस्पेंस है वह आप को फिल्म देखने पर ही पता चलेगा।
अब तक निभाई अन्य भूमिकाओं की तुलना में कितना अलग है यह किरदार?
यह बहुत ज्यादा सीरियस फिल्म है और मैं एक बेहद काॅमनमैन का किरदार निभा रहा हूं। मैं ने अभी तक कोई पोलीटिकल थ्रिलर फिल्म नहीं की है, इसलिए यह मेरे लिए एकदम नया और अलग किरदार है।
फिल्म समीर 2008 में अहमदाबाद में हुए सीरियल ब्लास्ट से प्रेरित बताई जा रही.
जी हां, फिल्म 2008 के बम ब्लास्ट से प्रेरित है, लेकिन उस पर आधारित नहीं है। वहां से एक आइडिया आया था और उस पर एक पूरी फिक्शन कहानी लिखी गई है। हमारे ही समाज के बारे में बात है हमारे ही जैसे लोगों के बारे में बात है। हमारे ही देश के बारे में बोलती है। 2008 में हमारे डायरेक्टर दक्षिण छारा उस हादसे पर डाक्यूमेंटी बना रहे थे तो वहां से उन के दिमाग में यह आइडिया आया था कि फ्यूचर में इस पर एक फिल्म बनानी चाहिए और इस तरह इस फिल्म का निर्माण हुआ।
आप इस रोल को करके कितन सैटिसफाइड हैं?
मैं किसी भी रोल को कर के सैटिसफाइड नहीं होता। मुझे हमेशा लगता है इससे भी बेहतर हो सकता था, इसलिए मैं अपना काम देखता भी नहीं हूं। जिन फिल्मों को देखकर लोग मुझे याद रखते हैं या सराहते हैं मुझे तो उन में भी अपना काम तसल्लीबकश नहीं लगता। मुझे लगता है कि लोगों ने तारिफ क्यों की थी? तो मैं उस तरह से सैटिसफाइड नहीं हूं लेकिन इस बात से सैटिसफाइड और खुश हूं कि मैं इस मीनिंगफुल फिल्म का हिस्सा बना जो अपने आप में एक यादगार फिल्म होगी.। मैं कोशिश करता हूं कि एक बेहतर कलाकार बनता जाऊं, सेलेक्टेड काम करता रहूं ताकि लोगों को भी अच्छा लगे। मैं यह नहीं चाहता कि लोग बोलें कि यह तो बिक गया पैसे के लिए कुछ भी करता है. हां, लेकिन कभी बिकना भी पड़ता है आखिर घर भी चलाना है।
आपका कोई ड्रीम रोल जो निभाना चाहते हैं?
नहीं मैं इस तरह के सपने नहीं देखता। जो काम आ रहा होता है मैं उस के हिसाब से आगे बढता जाता हूं। मैं अपने आप को इन्जाय करना ज्यादा मानता हूं बजाए फ्यूचर के बारे में सोचकर आज खराब करने के।

फिल्म तनु वैडस मनु में अरुण कुमार सिंह (चिन्टू) का मज़ेदार किरदार आज भी लोगों को याद है उस के लिए आपने कितनी तैयारी की थी?
उसकी तैयरी बहुत लंबी थी। एक काॅमेडी जोन था एक मजेदार फिल्म थी। हमारे दिमाग मे यही था कि लोगों को इस कैरेक्टर में इंट्रेस्ट आए पर पूरा टाइम यह लगे कि इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। बोलता कुछ था करता कुछ था।तो एक उस तरह का फन था। ऐसे लोगों से हम मिलते रहते हैं वे देखने में बड़े जैन्यून लगते हैं, लेकिन बाद में लगता है कि यह तो बहुत प्रोबेलेमैटिक है. ऐसे लोग हम सब ने अपनी जिंदगी में देखे हुए, आॅब्जर्ब किए हुए हैं।
यह फिल्म आप को कैसे मिली?
फिल्म का काॅन्सेप्ट ही था जिस की वजह से मैं ने यह फिल्म करना जरूरी था। आजकल पता नहीं लोगों को क्या हो गया है एक दम से ब्लैक एंड व्हाइट सोचने लगे हैं। यह अच्छा है यह बुरा है। ऐसा नहीं होता है। मैं सोच रहा था कि इस बारे में किसी को कुछ करना चाहिए। हमारे इतिहास को उठाकर देखें महाभारत सब से अच्छा उदहारण है। जिसमें कोई कैरेक्टर न ब्लैक है न व्हाइड है सब ग्रे हैं। न कोई पूरी तरह बुरा है न कोई पूरी तरह अच्छा है सब में सब कुछ है। वही जिंदगी की खूबसूरती है। हम लोग बात कर रहे थे कि लोगों को समझ में आना चाहिए दिखना चाहिए। जैसे आइसबर्ग 10 पर्सेंट ही दिखाई देता है बाकी पानी के नीचे होता है। उस नीचे को सामने लाने के लिए किसी को बोलना चाहिए। फिर सोचा कि कोई नहीं बोलेगा और अगर आप की समझ में ये बात आ रही है तो आप को ही बोलना चाहिए क्यों किसी का इंतजार करें । फिल्म के निर्देशक दक्षिण छारा से मेरी पुरानी दोस्ती है थियेटर के दिनों से जानपहचान है। हमारी आइडियोलाॅजी भी मिलती है। तो इन्होंने बताया कि हम इस तरह की फिल्म बनाना चाह रहे हैं और समीर का कैरेक्टर आप ही निभाइए तो मैं ने कहा कि इससे अच्छा तो कुछ और हो ही नहीं सकता।
कोई मेकर फिल्म क्यों बना रहा है मैं पहले यह देखता हूं। यदि कोई इसी फिल्म को कंट्रोवर्शियल बनाने के लिए बनाता तो शायद मैं नहीं करता। लेकिन इनका विजन बिल्कुल साफ था इसलिए मैें ने सोचा कि इस फिल्म के साथ जुड़ना चाहिए।