बाई रोड जायेंगे तो नयी दिल्ली से बनारस की दूरी लगभग 800 किलोमीटर के आस पास है और अगर ट्रेन से रवाना होंगे तो आपको बनारस कुछ नज़दीक खिसक आया लगेगा. यानी सड़क की तुलना में पटरियां आप को मुक्ति के शहर बनारस में कुछ घंटे पहले ही पहुंचा देंगी. बहरहाल तथाकथित रूप से आत्मा को मुक्ति दिलाने वाला शहर इस समय बेटियों पर बर्बरतापूर्ण लाठियां भांजने के लिए चहुंओर चर्चाओं में है. वैसे इस मामले में राज्य प्रशासन की तारीफ ज़रूर करना चाहिए कि कम से कम लाठियां बरसाने में उन्होंने लड़कियों और लड़कों के बीच कोई भेदभाव नहीं बरता है. चलो अब उन लोगों की शिकायत ज़रूर दूर हो गयी होगी जो हमेशा आवाज़ उठाते थे कि लड़कियों और लड़कों में कोई भेद नहीं होना चाहिए और साथ में उनकी भी जो चिल्लाते थे सरकार कमजोर है सरकार कमजोर है.
लोग कितने ख़राब होते हैं जो बस यूँ ही बिना सोचे समझे सरकारों की आलोचनाएं शुरू कर देते हैं. सरकार मज़बूत है तभी तो लड़कियों पर इतने मज़बूत सिपाहियों से मज़बूत लाठियां बरसवायीं। और यूनिवर्सिटी के मजबूत कुलपति ने बड़ी मज़बूती के साथ लड़कियों की आवाज़ को बंद करने की साजिश, आई मीन कोशिश की. देखिये भला, लोग कुछ भी बोलते रहते हैं, अब और क्या सुबूत दिया जाए इनको हां नी तो…
अब इधर जो लोग एंटी रोमियो स्कवाड को भला बुरा कह रहे हैं उन्हें क्या यह नहीं सोचना चाहिए कि ये लोग कोई लोहे लक्कड़ से थोड़े ही बने हैं जो प्रेमी जोड़ों को मार मार के थके नहीं होंगे? वार्ना किस लड़के की मजाल जो वो लड़कियों के हॉस्टल के बाहर अपनी पैंट की ज़िप खोल कर खड़ा हो और…., उन्हें अश्लील बातें बोलेँ। या ये कहें कि रेप करवाऊंगी या हॉस्टल जाओगी. ये लड़कियां तो बस यूँ ही होती हैं. बिलकुल नहीं सोचती हैं कि अगर पढ़ने आयी हैं तो चुपचाप पढ़ाई करें. कोई लफंगा उनकी जीन्स में या कुर्ते में हाथ डाले भी तो उसका विरोध करने खड़ी हो जाती हैं. पुलिस उन्हें उनके हॉस्टल में घुंस-घुस कर मारे भी तो उन्हें बोलने की भला क्या ज़रुरत है. कुलपति साहेब आवाज़ उठाने पर धमकाता भी है तो उन्हें सहम कर पलंग के नीचे दुबक जाना चाहिए. जैसे हमेशा से होता है. आखिर कुलपति साहेब कोई छोटा मोटा इंसान थोड़े ही होता है. धमकया भी होगा तो कुछ तो-सोचा समझा होगा.
सही तो है आखिर उन्हें किसने यह अधिकार दे दिया कि वो सड़क पर लाइट और सी सी टीवी कैमरे लगवाने या 24 घंटे लाइब्रेरी की सुविधा की मांगे उठायें। लड़कियां हैं लड़कियां बनकर रहना चाहिए। चुपचाप सब कुछ सहने की आदत क्यों खराब करने पर आमादा हो रही हैं. इससे क्या बाकी लड़कियों में गलत के खिलाफ आवाज़ उठाने का हौसला नहीं मिल जायेगा. हां नी तो…
ना जाने किसने बहकाया और बरगलाया इन्हें । शिकायत किस बात की, अब सदियों की इस परंपरा को तोड़ने का कुछ तो खामियाज़ा भुगतना ही था न. तभी तो हॉस्टल की वार्डन भी ठीक ही कहती है कि लड़कों ने छुआ ही तो है रेप तो नहीं किया. इसमें हंगामा मचाने वाली क्या बात है. अब वार्डन का भी इसमें क्या दोष. लकियों के कपड़ों में हाथ डालना भी भला कोई शिकायत करने वाली बात है. यूँ ही लड़कियां इसका विरोध करने खड़ी हो गयीं. यह तो हर रोज़ की बात है. हर शहर, हर चौराहे, गली-नुक्कड़ पर लड़कियां ये सब सहती हैं. कहीं कुछ ज़्यादा तो कहीं कुछ कम. आखिर वे भी तो लड़कियां होती हैं ना और चुप रहती हैं. कौन सा तुम्हारे शरीर पर उनसे कुछ अलग लगा है. सही भी तो है शिकायत तब करती जब रेप हो जाता. पगली कहीं की. समझती ही नहीं हैं. और तो और बनारस में हुए एक पत्रकार के टीवी प्रोग्राम में जाकर ये भी खुलासा कर देती हैं कि हॉस्टल की किसी लड़की को पेट दर्द की शिकायत होने पर उसकी बिना इज़ाज़त के उसका प्रेगनेंसी टेस्ट करवा दिया. वो भी 2 फिंगर्स वाला, जो अब रेप केसेस में भी बैन है.
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यह भी भला कोई बात हुई. हाँ नी तो.. इतनी जुर्रत हो गयी हैं इन लड़कियों की कि पूरे कॉलेज कैम्पस में जो नियम हैं वही नियम अपने लिए मांगने आ गयी. बताइये ज़रा नॉन वेज खाकर कौन सा तीर मार लेंगी. रहेंगी तो लड़कियां ही. या वाईफाई मिल गया तो क्या मंगल ग्रह पर जीवन की खोज कर लेंगी? नहीं ना? पोर्न ही देखेंगीं ना? तो क्यों मांगती हैं इंटरनेट की सुविधा। बाकी को मिलती है तो मिलने दो, उनमें कुछ तो सुर्खाब के पर लगे होंगे। तुम्हारी तरह लड़कियां तो नहीं होंगे वो.
तुम्हें समय के साथ चलने की क्या ज़रुरत है? क्यों फ़ेशनेबले कपड़े पहनना चाहती हो? तुम्हारे ज़रा छोटे कपड़े देखकर मर्दों का दिल मचल गया तो इसका ज़िम्मेदार कौन होगा? और फिर अगर किसी लड़के ने कुछ कह दिया या कर दिया तो फिर शिकायत लेकर खड़ी हो जाएँगी यूनिवर्सिटी के सिर पर। तुम बाबा आदम के ज़माने की बनी रहोगी तो, जापान कौन सा हमे लोन देने से इंकार कर देगा.
रात में नहीं पढ़ोगी तो देश में बुलेट ट्रेन लाने का सपना थोड़े ही ख़ाक होने वाला है. हां नी तो…पुलिस भी तो अपने ही देश की है कौन सी दुश्मन देश से बुलाई गयी थी. मार दिया तो क्या गुनाह किया। तुम जैसी बगावती लड़कियों से ऐसे नहीं निपटते तो क्या करते? ये लड़कियां भी न ज़रा भी अपडेट नहीं रहती हैं. शायद अख़बार शखबर नहीं पढ़ती होंगी वरना इस बात की खबर ज़रूर होती कि जिस रास्ते पर वे प्रदर्शन कर रही हैं वहां से पीएम का काफिला गुज़ारना है. अब पुलिसिया मार बेवजह तो थी नहीं ना जो ये इतना शोरगुल मचा रही हैं. देश की पुलिस की शिकायत कर रही हैं देशद्रोही कहीं की. काशी में एक कहावत कही जाती है, ‘रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी।’ अब इस पुरानी कहावत में लोग कुछ नया जोड़ना चाहें तो ज़रूर जोड़ सकते हैं. Haan Nee Toh…