कानून की दहलीज़ पर गर्भवती गुड़िया

By बुशरा खान
”मां हमेशा मेरी गुड़िया गुमा देती है. कभी ज़मीन पर फेंक देती है. देखो कपड़े कितने गंदे हो गए, मां से कहूंगी वो मेरी पियारी गुड़िया के लिए नए नए कपड़े बना देगी. तू मामा के पास मत जाना। मामा आएंगे तो मैं तुझे छुपा दूंगी। वो तुझे भी मारेंगे, कपडे भी छीन लेंगे. मामा गंदे हैं. हम दोनों छुप जायेंगे, दरवाज़े के पीछे या छत पर कहीं.”
गुड्डे-गुड़ियों से खेलने वाली महज़ 10 साल की मासूम गुड़िया को इस बात की भनक तक नहीं कि आखिर उसके साथ हुआ क्या? उसके पेट में दर्द क्यों उठ रहा है? वो पिता की उंगली पकड़ काले कोट वाले लोगों के बीच क्यों खड़ी की जाती है?  इतने सारे डॉक्टर अंकल उसे बार बार क्यों देखते हैं? मां क्यों रोती रहती है,  पिता उसके साथ अब क्यों नहीं खेलते? गुड़िया कुछ नहीं जानती.
मामला चंडीगढ़ का है जहाँ अपनी दस वर्षीय भांजी के साथ दरिंदगी करने वाले उसके सगे मामा ने रिश्तों को तार-तार कर दिया। मामा द्वारा लगातार बलात्कार की शिकार 10 साल की यह मासूम बच्ची गर्भवती हो गयी. बेहद शर्मनाक और घिनौना कुकृत्य. सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. क्या कहें ऐसे समाज को जहां गुड़ियों से खेलने की उम्र में बच्चियों के साथ ऐसे घिनौने अपराध अंजाम दिए जा रहे हैं. खुद को सभ्य क्या, इंसान कहलाने पर भी शर्म महसूस होती है, जहां इन नन्ही कोंपलों को खिलने से पहले ही मसल दिया जाता है. हम ऐसे वहशियाना अपराधों के बारे में  सुनते हैं. गुस्सा जताते हैं, मगर फिर जल्दी ही भूल जाते हैं, मगर मानसिक रूप से विकृत ये भक्षक मासूमों को अपनी हवस का शिकार बनाते रहते हैं. ये कैसे किसी के मामा, चाचा, भाई या पिता हो सकते हैं, जो दूधमुंही बच्चियों तक को हवस की निगाह से देखते हैं.  मामा के पाप का दंश झेल रही ये 10 साल की मासूम 26 माह की गर्भवती है. उसकी गर्भपात की अर्जी पर सुनवाई चल रही है.
लड़की की ओर से चंडीगढ़ जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर गर्भपात की इजाजत मांगी गई थी लेकिन एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट) एक्ट की धारा-3 के प्रावधान और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उसे गर्भपात की इजाजत नहीं मिली। इसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई है कि मामले में लड़की के गर्भवती होने के कारण उसकी जिंदगी को खतरा उत्पन्न हो गया है। कम उम्र में गर्भवती होने के कारण बच्ची के साथ-साथ उसके गर्भ में पल पर बच्चे को भी खतरा है। कम उम्र में गर्भवती होने के कारण बच्ची मानसिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर भी ट्रॉमा में आ गई है। शारीरिक तौर पर भी इस उम्र में वह बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं है। इतनी छोटी बच्ची किस मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना से गुज़र रही होगी?
 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डॉक्टरों की टीम गर्भ की मेडिकल जांच करके बताएगी कि क्या बच्ची के भ्रूण का गर्भपात हो सकता है? मामले का संज्ञान लेने में 26 हफ्ते लग गए। साढ़े 6 महीने से बच्ची न्याय की उम्मीद से अदालतों के चक्कर काट रही है. क्या कानून को नहीं मालूम कि  गर्भ की कुल अवधि 9 महीने होती है जिसकी 2 तिहाई अवधि उस बच्ची ने गर्भपात कराने के लिए डाली गई अर्ज़ी की सुनवाई होने के इंतज़ार में गुज़ार दिया है. सर्वविदित है कि हमारे देश में कानूनी प्रक्रिया बहुत धीमी, जटिल और थका देने वाली है. कहीं कानून की इस लेट लतीफी की वजह से इस मासूम की जान पर न बन आये.
अदालतों से कब तक गुहार लगायी जाए कि देश की अदालतों को इस तरह के मामलों की गंभीरता के आधार पर फैसला करने में तत्परता दिखानी चाहिए।  उसकी शारीरिक और मानसिक यंत्रणा का कारण उस बलात्कारी के साथ-साथ कहीं न कहीं हमारी लचर  न्यायव्यवस्था भी है। वैसे ये इस तरह का कोई पहला या नया मामला नहीं है. इस तरह के ढेरों मामले हैं. याचिका में कहा गया है कि देश में आए दिन बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं हो रही है कई मामले ऐसे आएं हैं जिनमें इन कारणों से बच्चियां गर्भवती तक हुई हैं। ऐसे मामले में कई बार 20 हफ्ते बाद ही गर्भवती होने का पता तक चल पाता है और कानून के तहत 20 हफ्ते से ऊपर की स्थिति में गर्भपात नहीं कराया सकता और इस कारण गर्भपात से मना कर दिया जाता है, ऐसे में एक्ट में बदलाव किया जाए और बलात्कार पीड़ित नाबालिग के केस को अपवाद बनाया जाए।
क्या कहता है कानून 
सुप्रीम कोर्ट ने  साल 2016 में एक मामले में एक नाबालिग, बलात्कार पीड़िता लड़की के पेट में पल रहे 24 हफ्ते के ‘असामान्य भ्रूण’ को गिराने की इजाज़त दे दी थी. कोर्ट ने ये आदेश इस आधार पर दिया है कि अगर भ्रूण गर्भ में पलता रहा तो महिला की शारीरिक और मानसिक स्थिति को गंभीर ख़तरा हो सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के तहत कानून में दी गई अपवाद की स्थिति का लाभ पीड़िता को दिया था।   इस मामले में केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अपवाद की एक स्थिति है और कानून की धारा-3 के तहत 20 हफ्ते के गर्भ की सीमा इस मामले में लागू नहीं होगी, क्योंकि मां की जिंदगी को गंभीर खतरा है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के तहत यह प्रावधान है कि यदि गर्भ से मां की जिंदगी को गंभीर खतरा हो तो 20 हफ्तों के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है।
याचिका में कहा गया है कि देश में आए दिन बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं हो रही है कई मामले ऐसे आएं हैं जिनमें इन कारणों से बच्चियां गर्भवती तक हुई हैं।
ऐसे मामले में कई बार 20 हफ्ते बाद ही गर्भवती होने का पता तक चल पाता है और कानून के तहत 20 हफ्ते से ऊपर की स्थिति में गर्भपात नहीं कराया सकता और इस कारण गर्भपात से मना कर दिया जाता है, ऐसे में एक्ट में बदलाव किया जाए और बलात्कार पीड़ित नाबालिग के केस को अपवाद बनाया जाए।
 गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम (संशोधन) बिल, 2014, जिसके अनुसार 20 और 24 हफ्ते के गर्भ को तभी गिराया जा सकता है जब डॉक्टरों की राय में इसके कारण माता के स्वास्थ्य को बड़ा नुकसान होने की गंभीर आशंका हो।
साधारण तौर पर इस कानून के अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों में 12 से 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराने की व्यवस्था दी है। यह कानून 47 साल पुराना है। इस कानून के अनुसार कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है जैसे-
-जब प्रेग्नेंट महिला की जान को खतरा हो।
-महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
-गर्भधारण बलात्कार के कारण हुआ हो।
-पैदा होने वाले बच्चे का उचित विकास गर्भ में न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो।
-12 हफ्तों तक के गर्भ को स्त्री विशेषज्ञ की सलाह से गर्भपात संभव है।
-12 से 20 हफ्ते के गर्भ को गिराने के लिए दो महिला डॉक्टरों की राय जरूरी है.
                                                                                                                                                  Feature graphics: Rajeev Khare 
                                                                                                                                                  Senior Art Director  

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