मालविका के बुलंद हौसले सिखाते हैं खुद में अटूट विश्वास रखना
उन सात महिलाओं मे मालविका अय्यर भी एक थीं जिन्होंने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया हैंडल को एक दिन के लिए संभाला था।
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बम विस्फोट से बचने और एक प्रेरक वक्ता बनने की मेरी यात्रा वास्तव में एक वास्तविक अनुभव रही है। मेरे सभी भाषणों और साक्षात्कारों में, मुझे हमेशा एक सवाल पूछा जाता है- दुनिया के लिए एक प्रेरणा हैं। आपकी प्रेरणा कौन है? मैं कहती हूं- मेरी माँ, जिस क्षण डॉक्टरों ने घोषणा की कि मैं खतरे से बाहर हूं, मां ने एक दृढ़ निश्चय के साथ कसम खाई कि वे मुझे इस आघात से बाहर लाएगीं और मुझे एक मजबूत महिला बनाएंगी।
मालविका अय्यर यह नाम है उस साहसी लड़की का जिसे मात्र 13 साल की उम्र में एक बम हादसे में अपने दोनों हाथ खो दिए थे। यह हादसा उनके साथ साल 2002 में हुआ था। इस हादसे ने उनके शरीर पर तो जख्म किए ही थे मासूम-सी आत्मा भी थर्रा गई थी। उस हादसे में उनके शरीर मे ढेरों फेक्चर आए। दो साल तक अस्पताल में रहना पड़ा। मालविका तमिलनाडू में जन्मी और राजस्थान के बीकानेर में उनकी परवरिश हुई। इस हादसे के बाद उन्होंने दोबारा उठ खड़े होने के लिए अपनी सारी ताकत को समेट कर एक जगह एकत्रित किया।
उन्होंने फिर से पढऩे की ठानी। वे चन्नई के एक स्कूल से प्राइवेट विद्यार्थी के तौर पर सीनियर सेकंडरी लीविंग सर्टिफिकेट परीक्षा में बैठीं। परीक्षा में लिखने के सहयोगी को रखा गया। इस परीक्षा में उन्हेंने टॉप किया था। उनकी इस काबलियत से प्रभावित होकर तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में मिलने के लिए उन्हें आमंत्रित किया। बाद में मालविका ने दिल्ली के सेंट स्टीफन से इकोनॉमिक्स ऑनर्स की डिग्री हासिल की। उन्होंने समाज में वंचितों के लिए आवाज उठाने के लिए लिए 2012 में मद्रास स्कूल ऑफ सोशल वर्क से समाज सेवा विषय में एमफिल किया।
यहां से उनके नए सफर की शुरूआत हुई और उन्हें एक नई पहचान भी मिली। वे एक इंटरनेशल मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर उभर कर दुनियॉ के सामने आईं। देश ही नहीं विदेशों में उन्हें बुलाया जाने लगा।
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने मालविका को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर राष्ट्रपति भवनमें ‘नारी शक्ति’ पुरस्कार से नवाजा।
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