अगर आपकी रुचि गहनों और हीरे-मोतियों में है और आप इसी दिशा में कुछ करते हुए भविष्य बनाना चाहते हैं तो जूलरी डिजाइनर के अलावा एक विकल्प जेमोलाजिस्ट का भी खुला हुआ है। कौन होता है एक जेमोलाजिस्ट पहले यह जान लेना जरूरी है।
जेमोलाजिस्ट वह व्यक्ति होता है जो अलग-अलग तरह के हीरों रत्नों और कीमती पत्थरों आदि की जांच-परख करता है। यानी उसका आकार, वजन, रूप और उससे जुड़ी अन्य सभी पक्षों पर अपनी पैनी और परखी नजर से जानकारी देना। एक जेमोलाजिस्ट इस बात का भी निर्धारण करता है कि हीरा, रत्न या पत्थर को कौन-सा आकार या रंग-रूप देना है और इसके लिए कौन-सी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए ताकि कीमती वस्तु को नुकसान न पहुंचे। एक जेमोलाजिस्ट वैज्ञानिक एवं तकनीकी पक्षों में कुशल होता है।
वैज्ञानिक और शोधकर्ता हीरों, रत्नों और कीमती पत्थरों के भौतिक एवं रसायनिंग गुणों, गठन आदि का विश्लेषण एक हीरा वैज्ञानिक या शेधकर्ता ही कर सकता है। विभिन्न जूलरी संस्थान और स्टोर्स अपने यहां इन्हें अच्छी तनख्वाह पर रखते हैं।
जैम वैलयुअर को हीरों और अन्य कीमती रत्नों, धातओं, पत्थरों का आकलन करते हुए इनकी दुर्लभता के आधार पर इनकी कीमत आंकनी होती है।
अवसर – कोर्स करने के बाद आपके सामने कई अवसर होंगे। दुनियॉ भर में बिकने वाले हीरों में से 90 फीसदी भारत में तराशे और पालिश किए गए होते हैं। के अनुमान के मुताबिक भारत में हीरे जवाहरात उद्योग में लगभग बारह लाख से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। जूलरी विक्रता, फर्मों, प्रोसेसिंग इकाइयों और एक्सर्पो हाउसों में काम के अवसर उपलब्ध हैं। देश में लगभग 40 से 50 इकाईयां हीरे और जवाहरात के उद्योग में लगी हुई हैं। इसलिए क्षेत्र काम करने वालों की मांग हमेशा बनी रहती है। बतौर फ्रीलांस भी आप फर्मों के साथ जुड़कर काम कर सकती हैं । विदेशी फर्मों, एक्सपोर्ट-इंपोर्ट हाउस में भी रोजगार के अवसर होते हैं। हीरे जवाहरातों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने जेम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रामेाशन कउंसिल की स्थपना की है। इसका मुख्याल मुंबई में है।
कोर्स
पाठ्यक्रमों में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा स्तर के अंडरग्रेजुएट कोर्स करवाए जाते हैं। आपको किसी भी स्ट्रीम में १२वीं पास होना जरूरी है। प्रवेश एंट्रेस एग्जाम के माध्यम से होता है। कुछ संस्थान सीखे भी दाखिला लेते हैं। जेमोलॉजी में कोर्स दो-तीन माह से लेकर एक-दो साल तक के हैं। डिप्लोमा इन जेम आइडेंटिफिकेशन, डिपलोमा इन कटिंग एंड पाजिशिंग ऑफ डायमंडस, पर्ल ग्रेडिंग कोर्स, डिप्लोमा कोर्स इन डायमंड टेक्नोलॉजी, डिप्लोमा इन जेमोलोजी एंड डायमंड ग्रेडिंग आदि। इन पाठ्यक्रमों के पाठ्यक्रम में जेमोलॉजिकल उद्योग में उपयोग किए जाने वाली विभिन्न तकनीकों और उपकरणों का व्हवहारिक ढंग से अध्ययन और उपयोग शामिल है।
कुछ प्रमुख संस्थान
» इंडियन जेमोलाजिकल इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली।
» जेमस्टोंस आॢटंसन्स ट्रेनिंग स्कूल, जयपुर।
» जेमोलॉजी विभाग, सेंट जेवियर्स कॉजेल, मुंबई। ।
» द जेम्स एंड ज्वेजरी एक्सपोर्ट प्रोमेाशन काउंसिल, जयपुर।
» द जेमोलॉजीकल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, मुंबई।
» जूलरी प्रोडक्ट डेवलपमेंट सेंटर, नई दिल्ली, इसकी ब्रांच मुंबई में भी है।
» इंडियन डायमंड इंस्टीट्यूट, सूरत।
» एसजी झावेरी सेंटर फॉर डायमंड टेक्नोलॉजी, मुंबई
» नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, निफ्ट, नई दिल्ली इत्यादि।