दो साध्वियों ने ढहायी पापी बाबा की लंका

”जनता के सामने सच्चाई लाना चाहती हूं…”  जिस बेबस मगर हिम्मती साध्वी ने डेरा प्रमुख गुरमीत बाबा राम रहीम की काली करतूतों का काला चिटठा एक खत के माध्यम से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखा था उस खत के आखिरी पैराग्राफ की पहली लाइन आज लगभग 15 सालों बाद 28 अगस्त को पूरी तरह सार्थक हो गई। नीचे वाली वीडियो नहीं देखी तो क्या देखा 

आखिर लम्बी लड़ाई के बाद बाबा की काली सच्चाई दुनिया के सामने आ गयी है. दो साध्वियों के हौसले और हिम्मत ने आखिरकार बाबा की गंदी नगरी का नाश कर दिया। डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को रेप के दोनों मामलों में सीबीआई की विषेश अदालत ने 10-10 साल की सजा सुनाई है। दोनों सजाएं एक के बाद एक लगातार कुल 20 साल तक चलेंगी। इस के अलावा अदालत ने 30 लाख रूपये का जुरमाना भी लगाया है। इसमें से 14 -14 लाख रूपये दोनों पीड़िताओं को मुआवजा दिया जाएगा और दो लाख रूपये अदालत में जमा करवाने होंगे। एक बलात्कारी बाबा सलाखों के पीछे चला गया, इस में ज्यादा खुश होने वाली बात नहीं है, क्योंकि स्वयंघोशित भगवानों और उन के अंधभक्तों की देश में कमी नहीं है। लेकिन उन दो साध्वियों को जरूर सलाम किया जाना चाहिए जिन्होंने एक बेहत ताकतवर साम्राज्य से अकेले लोहा लेने का फैसला किया और इस लड़ाई को उसके अंजाम तक पहुंचाया।

हम 130 करोड़ जनता का इस में कोई रोल नहीं है सिवाए उन गिनेचुने लोगों के जिन्होंने इस केस में पूरी ईमानदारी के साथ दोनों लडकियों का साथ दिया। बाकी की जनता ने तो हमेशा की तरह जनता होने का ही सुबूत दिया। जनता जो हर बात पर चुप रहती है। मूकदर्शक बनी रहती है. हां कोई ऐसा मामला जिस में ज्यादा ही शर्मिन्दिगी महसूस हो तो मोमबत्तियां लेकर रस्म अदायगी जरूर कर देती है और जनता जनार्दन वापस अपने घरों में जाकर सब कुछ भूल जाती है।
जिस खत में एक साध्वी ने गुरमीत बाबा के काले कारनामों को खुलासा किया है उसे पढ़कर रोंगटे खडे हो जाते हैं। इस मामले में गलती उन साध्वियों के परिवारवालों की भी है जिन के सामने इन साध्वियों ने खुलासा कर दिया था कि डेरे में सब कुछ ठीक नहीं है। इस पर घरवालों ने गुस्सा जताया था और कहा था कि अगर डेरे में ठीक नहीं है तो कहां ठीक होगा। इस तरह की अंधभक्ति ही स्वयंभू भगवानों को खादपानी देती है।

ऐसी ही अंधभक्ति की पट्टी उस लडकी के मांबाप की आंखों पर भी बंधी थी जो आशाराम को भगवान मान बैठे थे और अपनी बेटी को बापू के गुरूकुल में पढने भेज दिया था। लेकिन जब बाबा ने नाबलिक बेटी को अपनी हवस का शिकार बना लिया तब जाकर आंखों से अंधभक्ति की पटटी खुली। जिसका ख़ामियाज़ा न सिर्फ उस छोटी बच्ची को भुगतना पड़ा बल्कि उन्हें एक लम्बी कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ रही है. एक और मामला जो पिछले कुछ महीनों में काफी चर्चा में रहा हैै। केरल की एक युवती ने यौन शोषण करने वाले गंगेसनथा तीर्थापाडेर उर्फ स्वामी हरि स्वामी का 8 साल संबंध बनाने के बाद उस का लिंग काट डाला। इस मामले में भी कोल्लम के पनमना छंताबिल स्वामी आश्रम में 15 साल की उम्र में ही इस युवती को उस के परिवार वालों ने स्वामी की सेवा में दे दिया था। आश्रम में न केवल स्वामी बल्कि न जाने कितने लोगों ने युवती का यौन शोषण किया होगा।  यह परंपरा पुरानी है जिसे दासी प्रथा भी कहा जाता है. औरत अगर आज भी सामाजिक और धार्मिक बुराइयों के खिलाफ हर मोर्चे पर लड़ रही है तो इसके पीछे सदियों पुरानी रूढ़ियां और परम्पराएं हैं. देश में कई लड़कियों ने निडरता के साथ ऐसी लंबी लड़ाइयां लड़ी हैं और आज भी लड रही हैं जिसकी डगर बेहद मुश्किल और कांटोंभरी हैं.

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