पेरेंट्स भी कम दोषी नहीं

By: बुशरा खान 

बाल यौन शोषण के मामले में हमारा देश हमेशा आगे है. यौन शोषण की शिकार केवल लडकियां ही नहीं लड़के भी होते हैं. देश में प्रत्येक 30 मिनट में 2 से 10 वर्ष की एक बच्ची यौन शोषण का शिकार हो रही है. आंकड़ों का गणित बताता है कि देश में महिलाओं व बच्चियों के खिलाफ होने वाले लगभग 99 प्रतिशत आपराधिक मामलों में करीबी रिश्तेदार, जानपहचान वाले अथवा दोस्त लिप्त होते हैं। बलात्कार, यौनशोषण, अपहरण, हत्या आदि जघन्य अपराधों को अधिकांश वे लोग ही अंजाम देते हैं जो पीड़ित या उस के परिवार को किसी न किसी रूप में जानते हैं। साल दर साल आंकड़े आइना दिखाकर आगाह करते हैं कि किन लोगों से सावधान रहने की जरूरत है कौन लोग हो सकते हैं आपके बच्चों के गुनेहगार. इस सचाई से सबक लेने की बजाय लोग इसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं। यह सोचकर कि उन के साथ कभी ऐसा नहीं होगा। लेकिन अपराध हो जाने के बाद छाती पीटी जाती हैं हाय हाय की जाती है। कानून, समाज या सरकार को कोसा जाता है। सच तो यह है कि चाहे कितने भी कानून बन जाये मगर बच्चों का यौन शोषण पूरी तरह से तब तक बंद नहीं हो सकता जब तक मांबाप अपने बच्चों को यौन शोषण से बचाने की न ठान लें।
बेशक लोग ऐसी जघन्य घटनाओं के बाद कानून व्यवस्था को कोसें लेकिन एक कडवा सच यह है कि बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण के जिम्मेदार मातापिता व परिवार के सदस्य भी होते हैं। जिनकी लापरवाही व अनदेखी अपराधी को अपराध करने का मौका देती है। चंडीगढ़ की दस साल की मासूम गुड़िया पर आजकल चर्चा चल रही है जिसका उस के मामा द्वारा यौन शोषण किया गया और आज मातापिता गुड़िया की उंगली थामे गर्भपात के लिए दाखिल की गई अर्जी की सुनवाई के लिए अदालतों के चक्कर काट रहे हैं और मासूम गुड़िया अस्पतालों में अनेकों मेडिकल टेस्टों से गुजर रही है।
जो ख़बरें आ रही हैं उस से पता चलता है कि गुड़िया के पिता एक सरकारी कर्मचारी हैं और मां हाउसवाइफ. यदि गुड़िया के घरपरिवार की एक रूपरेखा खींची जाए तो तसवीर कुछ ऐसी हो सकती है। पिता शाम को घर लौटता होगा लेकिन मां एक हाउसवाइफ है, यानी वह लगभग पूरे दिन घर में ही मौजूद रहकर घर के कामकाजों में व्यस्त रहती होगी। इस तरह उन के पास बच्चों के साथ समय बिताने व उन पर हर समय नजर बनाये रखने का भरपूर अवसर रहता होगा। एक दस साल की बच्ची प्राय: सभी चीजों के लिए मां पर निर्भर रहती है। खानेपीने से लेकर कपडेलत्तों, नहानेधाने आदि हर छोटे बड़े काम में उसे मां की ज़रुरत पड़ती होगी. एक मां चाहे शिक्षित हो या न हो पर वह अपने बच्चे की ख़ामोशी या बेचैनी को आसानी से पढ़ सकती है।

गुड़िया की मां अपनी बेटी के साथ लंबे समय तक होने वाले शारीरिक शोषण के लक्षणों को क्यों नहीं भांप सकी? जब पहली बार मामा उसे घर से बाहर ले गया होगा और कुकर्म के बाद उसे घर छोड़ गया होगा तो क्या उस समय मां ने बेटी की हालत गौर नहीं किया होगा? क्या उस दिन उस बच्ची ने ढंग से खाया होगा? क्या वह रात को सो पायी होगी? एक नन्हीं बच्ची के साथ एक मैच्योर पुरूश द्धारा सैक्स करने के बाद क्या उस बच्ची की शारीरिक और मानसिक हालत सामान्य रह पायी होगी? क्या किसी ने रात में उस के कर्रहाने या सिसकने की आवाज नहीं सुनी होगी? कभी उस के कपडे नहीं बदलें होंगे या उसे नहलाते समय उस के शरीर पर ध्यान नहीं दिया होगा? मामा के हाथों जब उस का यौन शोषण किया गया होगा तो क्या वह बच्ची रोई-चिल्लाई नहीं होगी, घर वापसी पर उस के गालों पर सूखें आंसूओं के निशान उस की ख़ामोशी उस का डर किसी को नहीं अखरा होगा? क्या हर बार मामा के आने व उसे साथ ले जाने के समय मां ने बेटी के हावभाव पढ़ने की कोशिश नहीं की? कहा जाता है कि एक बेटी अपनी मां से ज्यादा अपने पिता के करीब होती है लेकिन, बेटियों को लेकर कुछ खास जिम्मेदारियां केवल मां को ही निभानी होती हैं। लेकिन पिता भी अपनी बेटी में होने वाले छोटे से बदलाव को परख लेता है. फिर गुड़िया की पीड़ा किसी ने क्यों नहीं समझी? घिनौनी हरकत करने वाला बच्ची का मामा है इसलिए घर मे उस के किसी भी समय आने जाने पर कोई पाबंदी नहीं होगी न ही बच्चों के साथ खेलने या घर से बाहर ले जाने पर उसे कोई रोक-टोक होगी।

मगर जब वह पहली बार गुड़िया के साथ गलत हरकत कर के घर लौटा होगा तो क्या उस का व्यवहार सामान्य रहा होगा? किसी ने कभी महसूस नहीं किया कि मामा को देखकर उनकी बेटी क्यों सहम जाती है? अभी हाल ही में एक और घटना सामने आई जिस में दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में 10वीं की छात्रा ने बच्ची को जन्म दिया तो सबके होश उड़ गए। बाद में पता चला कि वह रेप की शिकार हो रही थी। आरोपी पड़ोस में रहने वाला एक अधेड उम्र का ऑटोचालक है. वह किशोरी का 4-5 बार यौन शोषण कर चुका था। किशोरी को अपने चंगुल में रखने के लिए रुपयों का लालच देता था। लड़की को शुरू में अपने प्रेग्नेंट होने का पता नहीं चला। जब पेट फूलने लगा तो आरोपी ने उसे बच्चा गिराने की दवा खिला दी, जिसके असर से उसे स्कूल में प्री-मच्योर डिलिवरी हो गई।पुलिस को भी सबसे हैरानी की बात यह लगी कि बच्ची के परिजनों को भी उसके प्रेग्नेंट होने का अंदाजा नहीं लगा। उन्हें लग रहा था कि किसी बीमारी या गैस की वजह से किशोरी का पेट फूल रहा है।
इस मामले को देखा जाए तो यहाँ भी कहीं न कहीं यही सब परिवार की अनदेखी सामने आती है.
केरल की एक युवती ने यौन शोषण करने वाले गंगेसनंथा तोर्थापाडेर उर्फ स्वामी हरि स्वामी के साथ 8 सालों तक संबंध बनाने के बाद छुरी से उस का लिंग काट डाला। युवती के परिवार में उस की मां बीमार पिता और भाई हैं सभी कोल्लम के पनमना छतंबिल स्वामिकल आश्रम के भक्त हैं और यह युवती स्वमी के सेवा में तभी दे दी गई थी जब वह महज पंद्रह साल की थी. आठ वर्षों तक स्वामी ने उसका उपभोग किया। मातापिता ने बेटी को आश्रम के हवाले किया गया था ताकि वह आश्रम और स्वामी की सेवा करे और पुण्य कमाए।
कुछ ऐसा ही मामला उत्तररप्रदेश के शांहजहांपुर की उस नाबालिग लड़की का था जिसके अपराध में आशाराम जेल की हवा खा रहा है. मातापिता ने घर से मीलों दूर अपनी बेटी को आशाराम के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने भेजा था इसलिए क्योंकि मातापिता दोनों स्वयं इस संत के अंधभक्त थे.
2012 में निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए शुरू हुए आंदोलन के बीच पूर्वी दिल्ली के गांधीनगर में एक 4 साल की मासूम बच्ची को उस के पड़ोस में रहने वाले दो दरिंदों ने अपनी हैवानियत का शिकार बनाया था। दोनों युवक अक्सर गुड़िया को चॉकलेट दिया करते थे और उससे बातें करते थे। एक दिन दोनों ने शराब पी और बच्ची को चॉकलेट देने के बहाने अपने कमरे में ले गए जहां उन्होंने बडी बेदर्दी के साथ दरिन्दिगी की। बच्ची के मातापिता जानते थे कि उन के पड़ोस में दो युवक अकेले रहते हैं और उन की बेटी से नजदीकियां बढा रहे हैं। इस घटना की पृष्ठभूमि लगातार तैयार हो रही थी। ऐसे में मातापिता को सतर्क रहने की जरूरत थी। इस मामले में मातापिता दोनों अशिक्षित हैं. यदि अशिक्षित वर्ग अखबारों में इस तरह की घटनाएं नहीं पढ़ सकता तो टीवी पर न्यूजचैनलों पर आए दिनों छोटी बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों की खबरे दिखाई जाती हैं, जिससे कोई भी आसानी से समझ सकता है कि समाज में बच्चों के साथ कैसे-कैसे अपराध घटित हो रहे हैं।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या ऐसे अपराधों से बचाने के लिए लोग अपने बच्चों को घर की चारदीवारी में ही कैद कर के रखें अथवा मांबाप हर समय उन की पहरेदारी करें। प्रकृति का नियम है कि इंसान हो या जानवर अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाने की उन्हें एक सुरक्षित माहौल देने की भरसक कोश्शि करते हैं। लेकिन उन की जरा सी लापरवाही और अनदेखी ऐसे जघन्य घटनाओं की वजह बन जाती है। जरूरत है सावधान और सर्तक रहने की, कोई कानून या पुलिस हर किसी के घर के भीतर जाकर पहरेदारी नहीं कर सकती. कोई कानून आपके रिश्तेदारों या दोस्तों की निगरानी कर आप के बच्चों को सुरक्षा नहीं दे सकता. कानून घटना हो जाने के बाद अपना काम शुरू करता है, लेकिन आप को समय समय पर आगाह जरूरत करता है ताकि आप सावधान रहें, आप न सुनें तो क्या किया जाए। माँ बाप ही होते हैं जो अपने बच्चों की रक्षा करते हैं.

इंसानों पर ही नहीं यह हर जीवजंतु और परिंदों में भी देखा जाता है. पहले जॉइंट फॅमिली में बच्चों को दादादादी और नानानानी का दुलार मिलता था. बुज़ुर्ग हमेशा बच्चों पर नज़र रखते थे. कहानियों के ज़रिये अच्छे बुरे की समझ पैदा करते थे. आजकल एकल परिवारों में पतिपत्नी और बच्चे ही होते हैं. यदि पतिपत्नी दोनों वर्किंग हैं तो ऐसे में बच्चे के साथ क्या हो रहा है या बच्चा क्या कर रहा है उन्हें पता नहीं चलता. ज़रुरत है अपने बच्चों को लेकर सावधान रहने की. आपकी अवेयरनेस आपके बच्चे को किसी भी ऐसे दुर्घना से बचा सकती है.

*बचपन की कोई कड़वी घटना बच्चे का पूरा जीवन बरबाद न कर दे इस के लिए जरूरी है कि छोटी उम्र से ही बच्चे पर पूर ध्यान दिया जाए क्योंकि बच्चे के साथ अपराध किसी भी उम्र में हो सकता है। जैसा कि कई मामलो में दूधमुंहे बच्चों के साथ भी यौन अपराध की पुष्टि हुई है.

*रिश्तेदारों या दोस्तों पर कभी भी बच्चों को लेकर अंधा विश्वास न करें.

*यदि आपको अपने बच्चे को लेकर कोई छोटी सी बात खटकती है तो उसे नजरअंदाज न करें।

*बच्चे को किसी की गोद में दें तो उस पर पूरी नजर रखें और यदि वह बच्चे को घर से बाहर ले जाने की कोशिश करे तो तुरंत इंकार करें.

*शादियों पार्टियों के समय बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई हैं। इसलिए ऐसे अवसरों पर अपने बच्चों पर पूरा ध्यान दें उन्हें अपने से अलग न होने दें।

*दोस्तों या रिश्तेदारों को कभी भी बच्चे की किसी कमजोरी के बारे में न बताएं. जैसे की बच्चा पढ़ाई में कमजोर है या ज़िद्दी है आदि. लोग इन बातों का सहारा लेकर आपके बच्चे तक पहुंचकर उसे हानि पंहुचा सकते हैं.

*अपने बच्चें का डॉक्टरी चेकउप भी अपनी निगरानी में करवाएं.

*बच्चे को पड़ोसियों के हवाले न करें.

*बच्चों के साथ वक्त बिताएं उनके साथ कुछ देर खेलें.

*अगर बच्चा चुपचुप, घबराया या थका हुआ दिखे तो इसे मात्र पढ़ाई का बोझ या एग्ज़ाम की टेंशन न माने बल्कि वजह जानने की कोशिश करें.

*बच्चे के खानेपीने मं अचानक कोई बदलाव आ जाये तो नज़रअंदाज़ न करें.

*बच्चों से पूछें कि उन्होंने आज क्या-क्या किया और किन-किन लोगों से मिले. स्कूल में उन्होंने किन दोस्तों के साथ लंच किया किन के साथ खेले आदि.

*यह भी जाने की आज वो किन नए लोगों से मिले या किस ने उनसे क्या बात की.

*बच्चे से उसके टीचर के बारे में भी पोछते रहें. व व्यवहार ऑब्ज़र्व करें.

* बच्चे का स्कूल बैग चेक करते रहें।

*बच्चों के लिए प्ले स्कूल या डे केयर सेंटर का चुनाव करते समय बेहद सावधानी बरतें.

*बातों-बातों में बहाने से उनसे हर बात पता करने की कोशिश करें.

*अगर टीचर या कोच बच्चे को अकेले में कोई स्पेशल क्लास देने की बात कहे या उसे स्कूल या कोचिंग में ज़्यादा देर रुकने को कहे तो इंकार करें.

ज़्यादातर छेड़छाड़ व रेप संबंधी घटनाओं को अपनों द्वारा ही अंजाम दिया जाता है. ऐेसे में बच्चों को अपने रिश्तेदारों से भी सावधान रहने को कहें. बच्चे को बताएं की अगर कोई आप को जिन जगहों को आप ढक कर रखते हैं, उन्हें दिखाने को कहे तो बिलकुल न दिखाएं. अगर कोई घर का व्यक्ति भी आप के साथ छेड़छाड़ करे, तो उन्हें तुरंत माँ को बताना चाहिए. यदि कोई चॉकलेट देने के बहाने आपको कहीं चलने को कहे तो बिलकुल न जाएं.
अक्सर बाल यौन शोषण के मामले मैं वे लोग शामिल पाए जाते हैं जिन पर कभी किसी को इस बात का संदेह तक नहीं होता की वे ऐसा कर सकते हैं. ऐसे लोगों की पहचान आपको खुद करनी होगी. यदि कोई आपके बच्चे से कुछ ज़्यादा ही लगाव दिखा रहा है या आपकी अनुपस्थिति में उसके साथ समय बिताना का मौका ढूंढता है तो सावधान रहें. बच्चों को सही और गलत तरह के स्पर्श के बारे में अंतर बताएं
बच्चों को उनके शरीर के विभिन अंगों के बारे मैं अवगत कराएं। आप के बच्चे को उसके शरीर के हर अंग के नाम पता होने चाहिए। बच्चे को बताएं की कौन.कौन से अंग ऐसे हैं जिन्हे हमेशा कपड़ों से ढका होना चाहिए। उन्हें यह भी बताये की इन अंगों को कोई नहीं छुएगा। और अगर कोई छूता है तो यह गलत है और इसके बारे में मातापिता को बताना चाहिए। बच्चों को समझाएं कि यदि कोई उनके साथ गलत हरकत करता है तो इसमें बच्चों का दोष नहीं होता है उन्हें तुरंत बड़ों की मदद लेनी चाहिए।
अगर आप को संदेह है की आप के बच्चे के साथ यौन शोषण हुआ है तो जिस पर भी आप को संदेह है अपने बच्चे को फिर उसके संपर्क मैं कभी न आने दें। अगर आप किसी और के बच्चे को भी किसी मुसीबत में देखें तो अनजान न बनें.

सैक्सुअल हैरेसमैंट का अर्थ है जबरदस्ती सैक्स करने की कोशिश करना या बिना मरजी के किसी के बौडी पार्ट्स को छूना.
जैसे :
* जबरदस्ती सैक्स करना. *गरदन पर हाथ फेरने की कोशिश करना. * किस या हग करने की कोशिश करना. * बारबार सैक्स करने के लिए दबाव डालना. * गंदी नजरों से देखना व इशारे करना. *सैक्सुअल लाइफ से संबंधित सवाल पूछना. *किसिंग साउंड निकालना.
* अपनी बौडी को दूसरे की बौडी से जबरदस्ती टच करते हुए सैक्स की फीलिंग लेना.* किसी के साथ जानबूझ कर सट कर खड़े होना. *रोज पीछा कर के किसी को परेशान करना.

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